कोविड महामारी के बाद के दौर में स्मॉल और मिड कैप स्टॉक्स ने रफ्तार पकड़ ली थी। निफ्टी को उन्होंने अच्छे-खासे मार्जिन से पीछे छोड़ा। पिछले 12 महीनों का हाल देखें तो निफ्टी इंडेक्स ने 44 फीसदी की तेजी दर्ज की। किसी भी लिहाज से इसे शानदार कहा जाएगा। लेकिन स्मॉल और मिड कैप स्टॉक्स के मुकाबले लार्ज कैप्स का परफॉर्मेंस फीका है। मिड कैप इंडेक्स इसी दौरान 68 फीसदी चढ़ा। 86 फीसदी तेजी दर्ज की स्मॉल कैप इंडेक्स ने यानी लार्ज कैप्स से लगभग दोगुनी बढ़त। स्मॉल कैप इंडेक्स में इस तरह पिछले दो-तीन सालों के अंडर-परफॉर्मेंस की भरपाई भी हो गई। ऐसे में हो सकता है कि कुछ निवेशक स्मॉल और मिड कैप शेयरों में मुनाफावसूली पर फोकस कर रहे हों। इनके मुकाबले लार्ज कैप शेयरों को सुरक्षित समझा जाता है। इनका रिस्क-रिवॉर्ड रेशियो भी बेहतर है।

स्मॉल और मिड कैप सेगमेंट में दिख रही कमजोरी की एक वजह उनका ऊंचा वैल्यूएशन भी है। लार्ज कैप्स के मुकाबले ये ऊंचे स्तरों पर हैं। सामान्य तौर पर स्मॉल और मिड कैप इंडेक्स निफ्टी से डिस्काउंट पर ट्रेड करते हैं। लेकिन इन शेयरों में हाल के दिनों में आई बुल रैली ने इनका वैल्यूएशन निफ्टी से ज्यादा कर दिया। चतुर निवेशकों की नजर इस अंतर पर है और वे उसी लिहाज से कदम उठा रहे हैं।

लार्ज कैप्स के मुकाबले स्मॉल और मिड कैप शेयरों के ऊंचे वैल्यूएशन की बात ट्रेड वॉल्यूम्स से भी समझी जा सकती है। 21 जुलाई को निफ्टी के मुकाबले स्मॉल और मिड कैप सेगमेंट का वॉल्यूम जनवरी 2018 में दिखे लेवल को पार कर नए ऑल टाइम हाई पर पहुंच गया। यह तो हमें पता ही है कि फरवरी 2018 से फरवरी 2020 के बीच क्या हुआ था इनके साथ। उस दौरान स्मॉल और मिड कैप शेयरों में बहुत ज्यादा नरमी आई।
ऐड-ऑन प्राइस फ्रेमवर्क के बारे में जो कन्फ्यूजन है, उससे भी स्मॉल कैप सेगमेंट की पिटाई बढ़ी है। BSE ने इस बारे में तस्वीर साफ की है। उसने कहा है कि नया फ्रेमवर्क उन्हीं कंपनियों पर लागू होगा, जिनका मार्केट कैप 1000 करोड़ रुपये से कम है। उम्मीद है कि एनएसई और सेबी भी इस बारे में निवेशकों और स्टॉक ब्रोकरों के लिए पिक्चर साफ करेंगे।

अभी जो हाल है, उसमें निवेशकों के लिए बेहतर यही होगा कि वे खूब सोच-समझकर कदम बढ़ाएं, अच्छी तरह रिसर्च कर लें, उसके बाद ही कोई शेयर चुनें। उनके पोर्टफोलियो में कई शेयर अच्छी परफॉर्मेंस दे रहे होंगे। लेकिन उनके मोह में नहीं पड़ना चाहिए। बुल रैली में कई बार ऐसा भी होता है कि गधे घोड़ों से आगे निकल जाते हैं। लेकिन बुल रैली थमने पर यह भी हो सकता है कि घटिया शेयरों से निवेशकों ने जितना कमाया हो, उससे कहीं ज्यादा लॉस में पड़ जाएं।

कंपनियों के नतीजे काफी दमदार रहे हैं। इसके बावजूद शेयर मार्केट में करेक्शन की गुंजाइश है। यह 10 से 15 फीसदी नीचे आ सकता है। ऐसा होने पर घबराना नहीं चाहिए। शेयर बाजार में तो ऐसा होता ही रहता है। लेकिन यह जरूर ध्यान रखें कि ऐसी गिरावट में स्मॉल और मिड कैप शेयरों की कहीं ज्यादा पिटाई हो सकती है। उनमें 15 से 25 फीसदी तक करेक्शन आ सकता है। ऐसे मौके का फायदा उठाना चाहिए। लॉन्ग टर्म वेल्थ बनाने के लिए ऐसे निचले स्तरों पर निवेश करें। कोई भी बुल रैली ऐसी नहीं रही है, जिसमें बीच-बीच में 10 से 20 फीसदी का करेक्शन न आया हो। इसे अच्छा ही माना जाता है क्योंकि नए निवेशक बाजार में आते हैं। उनके जरिए नया पैसा भी आता है। अभी तो ऐसा नहीं लग रहा है कि इससे ज्यादा गिरावट हो सकती है। कोविड महामारी से ही कोई नया रिस्क उभर आए तो उसकी बात अलग है।

शेयर बाजार का आउटलुक वैसे भी ग्लोबल मनी और सरकारी नीतियों पर काफी हद तक टिका होता है। महामारी से ग्लोबल रिकवरी अभी ठोस नहीं दिख रही है। विकसित देशों में हालात तेजी से सुधरे हैं, लेकिन विकासशील देशों में ऐसी बात नहीं है। विकसित देशों ने अपने लोगों को तेजी से टीका लगाया है। ऐसे में इन देशों में कारोबार के जल्द ट्रैक पर लौटने में ज्यादा देर नहीं लगनी चाहिए। यह शेयर बाजारों के लिए अच्छी बात है।

इन विकसित देशों के पास एक सहूलियत भी है। वे बड़े पैमाने पर करेंसी प्रिंट कर सकते हैं और ऐसा करने पर उनके सामने सॉवरेन रेटिंग तुरंत घटा दिए जाने का कोई जोखिम भी नहीं है। यह गुंजाइश विकासशील देशों के पास नहीं है। अब तक ग्लोबल फाइनेंशियल मार्केट्स और कई देशों में जो रिकवरी आई है, उसका एक बड़ा कारण विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों का नरम रुख और उनकी ओर झोंका गया पैसा है।

मसलन, कोविड रिलीफ के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 12 महीनों में 9 लाख करोड़ डॉलर की लिक्विडिटी का इंतजाम किया। इसकी तुलना सब-प्राइम क्राइसिस और लीमैन क्राइसिस के दिनों से करें तो पता चलेगा कि इस बार कितना बड़ा कदम उठाया गया। तब 2008-09 के दौरान महज एक लाख करोड़ डॉलर का इंतजाम किया गया। अभी ऐसा लग रहा है कि विकसित देश ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में और पैसा झोंकते रहेंगे। इसमे चलते शेयर मार्केट में तेजी बनी रह सकती है। लेकिन एक जरूरी बात याद रहे। केंद्रीय बैंकों ने अगर अचानक बड़े स्तर पर कदम खींचा, तो शेयर बाजार के निवेशकों का हौसला बुरी तरह हिल सकता है।

अभी राहत पैकेज से जुड़े दो बिल अमेरिकी संसद में लंबित हैं। एक लाख करोड़ डॉलर का इंफ्रास्ट्रक्चर बिल पास हो जाए तो बड़ी राहत की बात होगी। साढ़े तीन लाख करोड़ डॉलर का सोशल वेलफेयर बिल भी संसद में है। उसके पास होने पर शेयर मार्केट में स्पेक्युलेशन बढ़ सकता है। दोनों ही सूरतों में शेयर बाजार के लिए सपोर्ट है। लेकिन इस बीच डॉलर में मजबूती आने लगी है। रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत होने लगा, तो विदेशी संस्थागत निवेशकों पर कुछ दबाव पड़ सकता है। वे अपना पैसा जल्द निकालने पर विचार कर सकते हैं। ऐसा होने पर बाजार में वोलैटिलिटी बढ़ेगी।

बाजार के लिहाज से कुछ और फैक्टर अहम हैं। क्रूड ऑयल, कमोडिटी, रियल एस्टेट और गोल्ड के दाम। ऑयल और कमोडिटी के दाम चढ़ने पर महंगाई को हवा मिलती है। इससे उन कंपनियों को फायदा होगा, जो या तो इन कमोडिटी की उत्पादक हैं या अच्छी प्राइसिंग पावर के साथ अपने सेगमेंट की मार्केट लीडर हैं। जो कंपनियां कमोडिटी प्रोड्यूसर हैं, उनका मुनाफा जोरदार ढंग से बढ़ेगा। वहीं, अपने सेगमेंट में दबदबा रखने वाली कंपनियों को मुनाफा बनाए रखने और मार्केट शेयर बढ़ाने में मदद मिलेगी। अगर गोल्ड और रियल एस्टेट के भाव चढ़ने लगे तो शेयर बाजार से ठीकठाक रकम इनकी ओर जा सकती है। रियल एस्टेट के लिए आने वाले दिन अच्छे लग रहे हैं। ऐसे में यह सेगमेंट शेयर बाजार से कुछ पैसा अपनी ओर खींच सकता है। लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि रियल एस्टेट किसी न किसी तरह भारत के जीडीपी के 40 फीसदी हिस्से पर असर डालता है। लिहाजा रियल एस्टेट में तेजी शेयर मार्केट को कुछ देर के लिए भले ही तकलीफ दे, लंबे समय में इसे फायदा ही होगा।

कुलमिलाकर देखें तो अगले 12 महीनों में शेयर बाजार में उथल-पुथल रह सकती है। बेहतरीन शेयरों से ही अच्छा पैसा बन पाएगा। अगर निवेशकों के पास कोई कमजोर शेयर हो, जिस पर उनका कोई खास भरोसा भी न जम रहा हो तो अपने पोर्टफोलियो से उसे तुरंत निकाल बाहर करें। हो सकता है कि आने वाले दिनों में कुछ लोगों को वॉरेन बफेट के इस फेवरिट कोट का मतलब समझ में आ जाए, ‘लहर उतरने पर पता चलता है कि कौन नंगे तैर रहा था।’

 

Original Article & Podcast posted on NavBharat Gold Website

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By Sameer Rastogi

18 years of experience, PG in Finance and has delivered Wealth Management lectures at IIM Lucknow, IBS Gurgaon and IIPM Delhi. Contributed to various newspapers. Strength – Application of Economic fundamentals to Investment

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