आरबीआई के एक हालिया बयान से निवेशकों के कान खड़े हो गए। अपनी सालाना रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार में जिस तरह की तेजी दिख रही है, उससे चिंता पैदा हो रही है। मौजूदा वैल्यूएशन काफी हद तक बबल जोन में है। आरबीआई ने कहा कि बाजार में वैल्यूएशन बहुत बढ़ गया है। इतना कि इकॉनमी के मौजूदा हाल और बाजार का कोई तालमेल ही नहीं दिख रहा। इतने ऊंचे वैल्यूएशन की एक वजह दुनिया में लेनदेन लायक अतिरिक्त नकदी है तो दूसरा कारण है निवेशकों का कुछ ज्यादा लालची हो जाना। यह चेतावनी भारत के सेंट्रल बैंक ने दी है तो शायद ही कोई ऐसा हो, जो इसे अनसुना करे। फिर भी, ऐसी कोई वजह नहीं दिखती कि निवेशक घबराहट में कोई कदम उठाएं। बाजार का मौजूदा हाल किसी जटिल पहेली से कम नहीं, जिसे हर निवेशक अपने तरीके से हल करने की कोशिश में है। हम यहां जो कुछ बता रहे हैं, उससे यह पहेली सुलझाने में मदद मिल सकती है।

यह पहला मौका नहीं है, जब आरबीआई ने शेयर बाजार में बबल बनने की चेतावनी दी है। कुछ महीने पहले भी आरबीआई ने ऐसी ही बात की थी। निफ्टी 50 और सेंसेक्स का मौजूदा प्राइस टु अर्निंग्स रेशियो यानी PE रेशियो अभी 30 है। यह वैल्यूएशन 2008 के सब-प्राइम बबल के दिनों से ज्यादा है, जब PE 28 था। 2008 के डॉटकॉम बबल के दौर में भी PE 27 ही था। लेकिन अभी जो ऊंचा वैल्यूएशन दिख रहा है, वह कंपनियों के मुनाफे में अचानक आई गिरावट की वजह से भी है। मुनाफे पर आंच आई पिछले साल कोविड के चलते लगे लॉकडाउन से। अगर इस साल कंपनियों के मुनाफे में रिकवरी को अपने आकलन में शामिल कर लें तो यह PE रेशियो 20 से 23 की रेंज में आ जाना चाहिए। दूसरी अहम बात यह है कि 2000 और 2008 के दौरान ब्याज दरें आज के मुकाबले ज्यादा थीं। लिहाजा कम ब्याज दरों के माहौल में देखें तो अधिक नहीं है PE रेशियो।

एक और पहलू पर गौर करना चाहिए। कंपनियों का मुनाफा तेज रिकवरी की दहलीज पर है। कोविड की दूसरी लहर नहीं आई होती तो कॉरपोरेट अर्निंग्स को लेकर काफी उत्साह दिखता। अभी कॉरपोरेट अर्निंग्स और जीडीपी का रेशियो 1.7 फीसदी के आसपास है। 2008 के पीक के दौरान यह रेशियो 7 के आसपास था और 2000 में यह था 4.2 प्रतिशत। नोटबंदी, उसके बाद अचानक GST लागू करने और फिर कोविड के चलते लगे लॉकडाउन से कंपनियों के मुनाफे को बड़ी चपत लगी। लेकिन यही लॉकडाउन कई कंपनियों के लिए वरदान भी साबित हुआ। बिक्री में जितनी कमी आई, उससे कहीं ज्यादा तेजी से उन्होंने लागत घटा ली। इससे उनका मुनाफा बढ़ गया। कई साल के हाई पर है उनका शुद्ध लाभ। जब रिकवरी आएगी तो इस ऊंचे प्रॉफिट मार्जिन के चलते कंपनियों के शानदार नतीजे दिखने चाहिए। कॉरपोरेट अर्निंग्स के GDP से ज्यादा तेजी से बढ़ने की काफी गुंजाइश है। यानी अर्निंग्स और GDP का अनुपात एक बार फिर साढ़े तीन गुने या इससे ज्यादा पर जा सकता है।

एक और पॉजिटिव फैक्टर है, जिससे बाजार में मोमेंटम बना रह सकता है। दुनियाभर में काफी लोगों के पास मौजूदा समय में सरप्लस सेविंग्स हैं। लॉकडाउन के ट्रैवल और लाइफस्टाइल जैसी चीजों पर खर्च नहीं हो रहा। वैक्सिनेशन बढ़ने पर खर्च करने का हौसला भी बढ़ेगा। इससे भी कंपनियों के मुनाफे में बढ़ोतरी होगी।

लेकिन बात जब शेयर बाजार की हो तो अवसरों पर गौर करने के साथ खतरों को भी नजर में रखना चाहिए। पता होना चाहिए कि अगर कोई खास रिस्क असल में सामने आ गया तो उससे किस हद तक नुकसान हो सकता है। अभी दो ऐसे खतरों की गुंजाइश दिख रही है जिनसे बाजार में अफरातफरी मच सकती है। एक तो निवेशकों के मन में बैठा यह विश्वास ही है कि ब्याज दरें लंबे समय तक कम रहने वाली हैं। इसके पीछे सोच यह है कि वर्ल्ड इकॉनमी अभी कोविड के झटके से उबरी नहीं है, लिहाजा महंगाई चढ़ने के डर के बावजूद दुनियाभर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें नीचे बनाए रखेंगे। ऐसे में नेगेटिव रियल इंटरेस्ट रेट को देखते हुए निवेशक बिटकॉइन और शेयरों जैसे रिस्की माने जाने वाले एसेट्स में पैसा झोंकते रहेंगे। आम निवेशकों को इस मोर्चे पर सावधान रहना चाहिए। ब्राजील, रूस और न्यूजीलैंड जैसे देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा चुके हैं। कनाडा के सेंट्रल बैंक ने सिस्टम से अतिरिक्त नकदी हटाने का कदम बढ़ा दिया है। आगे चलकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व को भी हाथ खींचने पड़ेंगे।

मार्केट के लिए दूसरा रिस्क है, कई देशों में कोविड का फिर से उभार। इस मोर्चे पर कोई भी काहिली खतरनाक हो सकती है। पिछले दो महीनों में भारत का हाल हम देख ही चुके हैं। ब्रिटेन और भारत में मिले वायरस के नए वैरिएंट्स कई दूसरे देशों में भी पाए जाने लगे हैं। ये वैरिएंट्स पहले के वायरस से कई गुना संक्रामक हैं। विकसित देश तो टीकाकरण की राह पर तेजी से बढ़ रहे हैं। कमजोर माली हालत वाले देशों को अपनी पूरी आबादी को टीका लगाने में दो-तीन साल लग सकते हैं। यह बात सबको समझनी होगी कि दुनिया में कहीं भी कोई भी कोविड पॉजिटिव व्यक्ति अगर हो तो खतरा सबके लिए बना रहेगा। सरकारों के लिए यह बड़ी चुनौती है। सबके सुरक्षित होने तक दुनियाभर में कहीं न कहीं लॉकडाउन लगता रहेगा। इससे इकॉनमी में रिकवरी पर असर पड़ेगा। कोरोना वायरस बहुत तेजी से म्यूटेट हो रहा है, लिहाजा नए वैरिएंट्स के उभरने से इनकार नहीं किया जासकता। अगर कोई म्यूटेंट ऐसा आ गया, जिस पर मौजूदा कोई वैक्सीन काम ही न करे तो बड़ी उलट-पुलट हो सकती है। ऐसे म्यूटेंट की आशंका भले ही बहुत कम हो, लेकिन इसे खारिज नहीं किया जा सकता।

ऐसे में आम निवेशकों को सावधानी बरतनी चाहिए। जांच-पड़ताल करने के बाद ही शेयरों में निवेश करें। ऐसी कंपनियों में पैसा लगाएं, जिनका बिजनेस मॉडल अच्छा हो। जिनके प्रमोटर कामकाज में गड़बड़ी न करते हों। पिछले सालभर में कई नए निवेशकों ने बाजार में कदम रखा। उनका पोर्टफोलियो उम्मीद से ज्यादा प्रॉफिट पर है। ऐसी हालत में अमूमन होता यह है कि निवेशक बाजार में चल रही गप्प के भी असर में आ जा जाते हैं। हो सकता है कि नए निवेशकों को छिपे हुए जोखिमों का अंदाजा न हो। इनमें से अधिकतर ने किसी बड़े क्रैश का सामना नहीं किया होगा। इन बातों के बावजूद सलाह यही है कि घबराएं नहीं। रिस्क पर निगाह रखें। अगर कोई रिस्क वास्तव में आ गया तो 15 से 20 फीसदी तक गिर सकता है बाजार। ऐसे उताार-चढ़ाव से भौचक्का न हों। अगले तीन से पांच सालों के लिए बाजार में बने रहें। बाजार को आपके ऐसे धीरज का इनाम देना चाहिए।

(लेखक सक्षम वेल्थ प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

Original Article published on Navbharat Gold

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By Sameer Rastogi

18 years of experience, PG in Finance and has delivered Wealth Management lectures at IIM Lucknow, IBS Gurgaon and IIPM Delhi. Contributed to various newspapers. Strength – Application of Economic fundamentals to Investment

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